लखीमपुर खीरी, 06 अक्टूबर (ग्राउंड रिपोर्ट): सुबह सात बजे मवेशियों के लिए हरा चारा लेने निकला एक मासूम किसान, जंगली जानवर का निवाला बन चुका था। उसका शव इतना क्षत-विक्षत था कि परिजनों ने उसे देखते ही बेहोशी की हालत में आ गए। यह मंजर है लखीमपुर खीरी के धौरहरा थाना क्षेत्र के दोंदरा पंडितपुरवा गांव का, जहां रविवार सुबह एक तेंदुए का हमला लखीमपुर में एक किसान की जिंदगी की कहानी खत्म कर गया।
यह घटना सिर्फ एक किसान की मौत की कहानी नहीं है, बल्कि इंसान और जंगली जानवरों के बीच बढ़ते संघर्ष की दस्तक है। पिछले एक महीने में यह इलाके का चौथा मामला है, जब किसी न किसी व्यक्ति पर तेंदुए ने हमला किया है। ग्रामीणों का डर बढ़ता जा रहा है और वन विभाग की कार्यवाही पर सवालिया निशान लग रहे हैं।
क्या हुआ था उस सुबह? घटना का पूरा सिलसिला
मृतक किसान की पहचान धौरहरा वन रेंज के लोकईपुरवा निवासी 35 वर्षीय मुन्नालाल के रूप में हुई है। परिवार के सदस्यों ने बताया कि वह रविवार सुबह करीब 7 बजे अपने मवेशियों के लिए हरा चारा लेने घर से निकले थे। उनका रुख पड़ोसी गांव दोंदरा पंडितपुरवा में शंकर नामक व्यक्ति के गन्ने के खेत की ओर था, जहां वह घास काटने गए थे।
दोपहर 12 बजे तक जब मुन्नालाल घर नहीं लौटे, तो परिवार के सदस्यों को चिंता सताने लगी। इसके बाद वे गांव के कुछ अन्य लोगों के साथ उनकी तलाश में निकले। करीब दो घंटे की तलाशी के बाद दोपहर 2 बजे उनका अधखाया हुआ शव गन्ने के खेत में मिला। मौके से करीब 10 मीटर की दूरी पर उनके खाए हुए पैर की हड्डी भी बरामद हुई।
तेंदुए के हमले से मचा कोहराम, ग्रामीणों ने उठाए सवाल
मृतक की पत्नी रेखा देवी का दर्द शब्दों से परे है। उन्होंने बताया, “जब हमें खेत में उनका शव मिला, तो उनका दाहिना पैर पूरी तरह से तेंदुआ खा चुका था। सिर पर भी दांतों के गहरे निशान थे।” लाश मिलने के बाद पूरे गांव में मातम का माहौल छा गया और लोग सदमे में आ गए।
घटना की सूचना मिलते ही कोतवाली धौरहरा से पुलिस और वन विभाग के अधिकारी मौके पर पहुंचे। हालांकि, गुस्साए ग्रामीणों ने उन्हें घेर लिया और पोस्टमॉर्टम के लिए शव ले जाने से इनकार कर दिया। ग्रामीणों का आरोप था कि कई महीनों से तेंदुआ इस क्षेत्र में देखा जा रहा था, लेकिन वन विभाग ने इसे पकड़ने की कोई गंभीर कोशिश नहीं की।
विधायक का अधिकारियों पर गुस्सा, दिया यह आदेश
मामले की गंभीरता को देखते हुए शाम करीब 5 बजे धौरहरा के विधायक विनोद शंकर अवस्थी भी मौके पर पहुंचे। उन्होंने न केवल ग्रामीणों को शांत कराया, बल्कि वन विभाग के अधिकारियों को सख्त फटकार भी लगाई।
विधायक ने कहा, “इस मौत का हिसाब कौन देगा? पकड़ने को कहते हैं तो बोला जाता है कि लखनऊ से परमिशन ले रहे हैं। तेंदुआ आदमखोर हो गया है। इसे तुरंत पकड़िए।” उन्होंने आगे आदेश दिया, “जब तक यह तेंदुआ पकड़ा नहीं जाता, यहां से कोई भी अधिकारी-कर्मचारी नहीं हिलेगा।”
वन विभाग का जवाब और कार्रवाई का दावा
वन विभाग के रेंजर नृपेंद्र चतुर्वेदी ने बताया कि तेंदुए को ट्रैक करने के लिए ट्रैप कैमरे लगाए गए हैं। उन्होंने यह भी दावा किया कि तेंदुए को ट्रेंकुलाइज करने के लिए मुख्यालय से अनुमति मांगी गई है और सोमवार दोपहर तक पिंजरा लगा दिया जाएगा। वन विभाग की टीम ने क्षेत्र में निगरानी बढ़ा दी है।
पीड़ित परिवार को शीघ्र ही मुआवजा दिलाने का भरोसा दिया गया है।
पांच नाबालिग बच्चों के सिर से टिका साया हटा, परिवार डूबा गम में
इस हादसे ने मुन्नालाल के परिवार का एकमात्र कमाने वाला छीन लिया है। वह अपने पीछे पत्नी पूजा देवी (30) और पांच छोटे-छोटे बच्चों को छोड़ गए हैं। बच्चों में सबसे बड़ी बेटी क्रांति देवी (14) है, जबकि सबसे छोटा बेटा रवि महज 4 साल का है।

मुन्नालाल खेती-बाड़ी करके ही परिवार का भरण-पोषण करता था。 उनकी मौत से परिवार की आजीविका पर एक बड़ा संकट आन खड़ा हुआ है और परिजन गहरे सदमे में हैं।
लखीमपुर में तेंदुए का आतंक, एक महीने में चार हमले दर्ज
यह घटना कोई पहली घटना नहीं है। पिछले एक महीने में धौरहरा और आसपास के इलाकों में तेंदुए के हमलों की यह चौथी घटना दर्ज की गई है।
- ईसानगर क्षेत्र के खजुआ गांव में रमजान नामक व्यक्ति पर 04 अक्टूबर को तेंदुए ने हमला किया, जिसमें वह मामूली रूप से घायल हो गए।
- 23 सितंबर को रमियाबेहड़ क्षेत्र के बबियारी गांव के मिश्रीलाल पर तेंदुए ने हमला कर उन्हें घायल कर दिया था।
- 10 सितंबर को नकहा के केवलपुरवा निवासी पूर्व प्रधान प्रकाशचंद उर्फ मोतीलाल पर भी तेंदुए ने हमला किया था।
इन हमलों ने पूरे क्षेत्र के ग्रामीणों को दहशत में डाल दिया है।
क्यों बढ़ रहा है इंसान-वन्यजीव संघर्ष?
दुधवा नेशनल पार्क के आसपास के इलाकों में यह समस्या बरसात के मौसम में और विकराल रूप ले लेती है। वन विभाग के एक अधिकारी के मुताबिक, बरसात में जंगलों में पानी भर जाने के कारण बाघ और तेंदुआ जैसे जानवर भोजन और शरण की तलाश में रिहायशी इलाकों की ओर रुख करने लगते हैं।
ये जानवर गन्ने के घने खेतों को अपना सुरक्षित ठिकाना बना लेते हैं, जिससे गांवों में उनकी मौजूदगी और हमलों की घटनाएं बढ़ जाती हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि वन विभाग द्वारा चेतावनी मिलने के बावजूद समय रहते प्रभावी कदम नहीं उठाए जाते।
इन इलाकों में सबसे ज्यादा है तेंदुए का खौफ
लखीमपुर खीरी जिले के कई इलाके इन दिनों तेंदुए के आतंक से ग्रस्त हैं। धौरहरा, फरधान, रमियाबेहड़, मझगईं और निघासन रेंज के गांवों में लोग डर के साए में जी रहे हैं।
मझगईं क्षेत्र के चौखड़ा फार्म में पिछले महीने ही तेंदुए ने छह से ज्यादा कुत्तों और बछड़ों को मार डाला था। इसके अलावा, फरधान के गांव गनेशपुर, करनपुर, हरिहरपुर और सिंगाही क्षेत्र में भी तेंदुए का खौफ है।
लखीमपुर खीरी का यह इलाका आज एक बार फिर से इंसान और वन्यजीवों के बीच बढ़ते संघर्ष की कहानी कह रहा है। एक तरफ जहां एक पिता की जान चली गई है, वहीं पूरा का पूरा इलाका सुरक्षा को तरस रहा है। वन विभाग की ओर से तेंदुए को पकड़ने के दावे और ग्रामीणों का डर, यह लड़ाई अब सिर्फ जंगल तक सीमित नहीं रह गई है। यह लड़ाई अब गन्ने के खेतों और गांवों की चौखट तक पहुंच चुकी है। आगे की कार्रवाई ही तय करेगी कि इस इलाके के लोगों को फिर से सुरक्षित महसूस करवाया जा सकता है या नहीं।
