भारत ने काबुल में फिर से खोला दूतावास, तालिबान के विदेश मंत्री मुत्ताकी के दौरे ने रिश्तों में जड़ी नई बुनियाद

दिल्ली-काबुल रिश्तों का नया अध्याय, सुरक्षा आश्वासन और आर्थिक सहयोग पर सहमति

“एस. जयशंकर और अमीर खान मुत्ताकी की ऐतिहासिक बैठक के बाद भारत ने लिया बड़ा फैसला, अफगानिस्तान में राजनयिक उपस्थिति को पूर्ण दूतावास का दर्जा”

अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने के चार साल बाद, भारत ने आखिरकार काबुल के साथ अपने राजनयिक रिश्तों को एक नई दिशा देने का फैसला किया है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर और तालिबान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी के बीच हुई ऐतिहासिक बैठक में भारत काबुल दूतावास को फिर से खोलने समेत कई अहम फैसले हुए हैं। यह दौरा न सिर्फ द्विपक्षीय रिश्तों के लिए, बल्कि पूरे क्षेत्र की भू-राजनीति के लिए एक मील का पत्थर साबित होगा।

विदेश मंत्री जयशंकर और मुत्ताकी की बैठक में हुआ ये अहम फैसला

शुक्रवार, 10 अक्टूबर 2025 को नई दिल्ली में हुई बैठक में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने औपचारिक रूप से घोषणा की कि भारत काबुल स्थित अपने “तकनीकी मिशन” को पूर्ण दूतावास का दर्जा देगा। यह फैसला चार साल बाद लिया गया है, जब अगस्त 2021 में तालिबान की सत्ता में वापसी के बाद भारत ने अपना दूतावास बंद कर दिया था और अपने राजनयिकों को वापस बुला लिया था । जून 2022 में, भारत ने एक “तकनीकी टीम” तैनात करके काबुल में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी, जिसे अब पूर्ण दूतावास में बदल दिया जाएगा।

मुत्ताकी का भारत दौरा – कूटनीतिक रूप से क्यों है इतना अहम?

अफगानिस्तान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी का यह दौरा 9 से 16 अक्टूबर 2025 तक चला । यह 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद किसी वरिष्ठ तालिबान मंत्री का भारत का पहला दौरा था। इस दौरे को संभव बनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) ने मुत्ताकी को 9 से 16 अक्टूबर तक की अवधि के लिए यात्रा प्रतिबंध से अस्थायी छूट दी थी। मुत्ताकी की यात्रा काफी व्यस्त रही, जिसमें उन्होंने दिल्ली के अलावा सहारनपुर स्थित दारुल उलूम देवबंद का भी दौरा किया । हालांकि, आखिरी समय में उनका आगरा दौरा रद्द कर दिया गया, जहां वे ताजमहल देखने वाले थे।

भारत ने काबुल में फिर से खोला दूतावास, तालिबान के विदेश मंत्री मुत्ताकी के दौरे ने रिश्तों में जड़ी नई बुनियाद

सुरक्षा चिंताओं पर मुत्ताकी का अहम आश्वासन

बैठक के दौरान अफगान विदेश मंत्री ने भारत को एक अहम आश्वासन दिया। मुत्ताकी ने कहा कि अफगानिस्तान किसी भी सैन्य बल को अपनी जमीन का इस्तेमाल दूसरे देशों के खिलाफ करने की इजाजत नहीं देगा। यह आश्वासन भारत के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जो लंबे समय से अफगानिस्तान में पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी गतिविधियों को लेकर चिंतित रहा है। विदेश मंत्री जयशंकर ने पहलगाम आतंकी हमले के दौरान अफगानिस्तान के समर्थन की सराहना की और कहा कि आतंकवाद के सभी रूपों से लड़ने के लिए दोनों देश समन्वित प्रयास करेंगे।

द्विपक्षीय संबंधों के नए आयाम – व्यापार से लेकर खनन तक

  • आर्थिक सहयोग: दोनों देशों ने व्यापार और निवेश बढ़ाने पर सहमति जताई। अफगानिस्तान ने भारतीय कंपनियों को अपने खनन क्षेत्र में अवसरों की खोज करने के लिए आमंत्रित किया।
  • परिवहन कॉरिडोर: भारत-अफगानिस्तान एयर फ्रेट कॉरिडोर की शुरुआत की गई, जिससे द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा मिलेगा।
  • चाबहार बंदरगाह: मुत्ताकी ने चाबहार बंदरगाह पर सहयोग की अपील की, जो भारत और अफगानिस्तान के लिए पाकिस्तान को बायपास करके व्यापार और कनेक्टिविटी का महत्वपूर्ण रास्ता है।

क्षेत्रीय भू-राजनीति में बदलाव के संकेत

भारत और तालिबान के बीच बढ़ती इस नजदीकी ने क्षेत्रीय समीकरणों को हिलाकर रख दिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह दौरा पाकिस्तान के लिए एक बड़ी strategic झटका है, जो तालिबान को अपने प्रभाव क्षेत्र में मानता रहा है। दिलचस्प बात यह है कि मुत्ताकी के भारत दौरे के ठीक बीच में, तालिबान बलों ने दुर्रंद लाइन पर पाकिस्तानी चौकियों पर हमला किया, जिसमें 58 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए और 25 चौकियां कब्जे में ली गईं । यह घटना क्षेत्र में बदलते गठजोड़ और बढ़ते तनाव का संकेत देती है।

तालिबान के लिए भी यह एक बड़ी राजनयिक जीत

अमेरिकी थिंक-टैंक विल्सन सेंटर के माइकल कुगलमैन के अनुसार, भारत का यह कदम तालिबान के लिए एक बड़ी राजनयिक जीत है। भारत जैसा राष्ट्र, जिसने तालिबान के साथ कभी मैत्रीपूर्ण संबंध नहीं रखे, अगर वह तालिबान के साथ सामान्य रिश्ते बना रहा है, तो यह तालिबान की अंतरराष्ट्रीय स्वीकार्यता बढ़ाने में मददगार साबित होगा। हालांकि, भारत ने अभी तक तालिबान सरकार को औपचारिक मान्यता नहीं दी है और काबुल में वास्तव में समावेशी सरकार के गठन पर जोर दे रहा है ।

दिल्ली-काबुल के नए रिश्तों ने बदला क्षेत्रीय समीकरण

भारत और अफगानिस्तान के बीच बढ़ते सहयोग ने न सिर्फ द्विपक्षीय रिश्तों, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया के भू-राजनीतिक समीकरण को बदल दिया है। काबुल में भारत काबुल दूतावास का फिर से खुलना दोनों देशों के बीच विश्वास और सहयोग की नई इमारत खड़ी करेगा। जहां एक ओर भारत को अफगानिस्तान में अपनी सुरक्षा चिंताओं के समाधान का आश्वासन मिला है, वहीं तालिबान शासन को अंतरराष्ट्रीय स्वीकृति की दिशा में एक महत्वपूर्ण साझेदार मिल गया है। यह व्यावहारिक कूटनीति का एक उदाहरण है, जहां दोनों पक्षों ने अपने-अपने राष्ट्रीय हितों को साधते हुए संबंधों को एक नई दिशा देने का फैसला किया है।

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