देवरिया (उत्तर प्रदेश), 17 अक्तूबर: गुरुवार 16 अक्तूबर की शाम 3 बजे जब देवरिया जिले की रुद्रपुर तहसील में एंटीकरप्शन टीम की जीपें घुसीं, तो पूरे परिसर में सन्नाटा छा गया। सादे कपड़ों में मौजूद टीम के सदस्यों ने सीधे रजिस्टार कानूनगो (आरके) के दफ्तर पर निशाना साधा और वहां काम कर रहे एक निजी मुंशी को रिश्वतखोरी के आरोप में हिरासत में ले लिया। लेकिन यह कार्रवाई अचानक एक बड़े विवाद में तब्दील हो गई, जब अधिवक्ताओं और कर्मचारियों के समूह ने टीम को घेरकर आरोपी को छोड़ने पर मजबूर कर दिया।
छापे की शुरुआत और गिरफ्तारी
गुरुवार को दोपहर करीब तीन बजे एंटीकरप्शन विभाग, गोरखपुर की दो गाड़ियां एक बोलेरो और एक पुलिस वाहन रुद्रपुर तहसील परिसर में पहुंचीं। टीम के सदस्य सीधे आरके दफ्तर पहुंचे और वहां मौजूद अरविंद श्रीवास्तव नाम के एक व्यक्ति को हिरासत में लेकर अपने वाहन में बैठा लिया। सूत्रों के मुताबिक, विभाग को रजिस्टार कानूनगो दफ्तर में रिश्वत लेने की शिकायत मिली थी, जिसके आधार पर यह कार्रवाई की गई।
अधिवक्ताओं के विरोध ने पलटी कार्रवाई
जैसे ही एंटीकरप्शन टीम आरोपी को लेकर तहसील से बाहर निकलने लगी, तहसील परिसर में मौजूद अधिवक्ताओं और कर्मचारियों की एक भीड़ इकट्ठा हो गई। भीड़ ने टीम के वाहनों को घेर लिया और कार्रवाई पर सवाल उठाने लगे। बताया जा रहा है कि मौके पर मौजूद लोगों ने दबाव बनाकर टीम से अरविंद श्रीवास्तव को वाहन से उतरवा लिया। विरोध की तीव्रता को देखते हुए एंटीकरप्शन टीम को अपनी कार्रवाई पर पुनर्विचार करना पड़ा।
तहसीलदार ने पुष्टि की – ‘यह निजी कर्मचारी है’
इस पूरे घटनाक्रम के बाद एंटीकरप्शन टीम आरोपी को लेकर तहसीलदार चंद्रशेखर वर्मा के पास पहुंची। तहसीलदार ने अरविंद श्रीवास्तव की पहचान कराते हुए स्पष्ट किया कि वह व्यक्ति तहसील का सरकारी कर्मचारी नहीं, बल्कि एक निजी मुंशी है। तहसीलदार की इस पुष्टि के बाद एंटीकरप्शन टीम के पास अरविंद को छोड़ने के अलावा कोई चारा नहीं बचा और वह बिना कोई आधिकारिक बयान जारी किए मौके से वापस लौट गई।
सवालों के घेरे में एंटीकरप्शन टीम की कार्रवाई
यह घटना कई गंभीर सवाल खड़े कर गई है। अगर एंटीकरप्शन टीम के पास रिश्वतखोरी की कोई ठोस शिकायत थी, तो आरोपी को सिर्फ तहसीलदार के बयान के आधार पर छोड़ना कितना उचित है? दूसरी ओर, स्थानीय सूत्र बताते हैं कि अरविंद श्रीवास्तव पिछले 20 वर्षों से आरके दफ्तर में एक निजी मुंशी के तौर पर कार्यरत हैं और तहसील के कामकाज में उनकी भूमिका हमेशा चर्चा में रहती है। रुद्रपुर तहसील में निजी कर्मचारियों द्वारा रिश्वत लेने की शिकायतें भी नई नहीं हैं, लेकिन इन पर कोई ठोस कार्रवाई नजर नहीं आती।

निजी मुंशियों की भूमिका पर उठते सवाल
इस पूरे प्रकरण ने तहसील व्यवस्था में निजी मुंशियों की भूमिका पर एक बार फिर से बहस छेड़ दी है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर सरकारी कमरों में, सरकारी कुर्सियों पर बैठकर सरकारी काम करने का अधिकार इन निजी मुंशियों को किसने दिया? बिना किसी सरकारी वेतन के यह लोग सालों-साल तहसील जैसे संवेदनशील दफ्तरों में अपनी सेवाएं कैसे दे रहे हैं और उनके पालन-पोषण का स्रोत क्या है? यह सवाल प्रशासनिक व्यवस्था के मूल में छिपी एक बड़ी समस्या की ओर इशारा करते हैं।
इस घटना ने भ्रष्टाचार विरोधी दमन तंत्र की चुनौतियों और तहसील जैसे संवेदनशील कार्यालयों में व्याप्त अव्यवस्था दोनों पर ही एक बड़ा प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। अब नजरें प्रशासन और एंटीकरप्शन विभाग की अगली कार्रवाई पर टिकी हैं, कि क्या इस मामले की कोई तार्किक परिणति होगी या यह एक और दबा दिया गया मामला बनकर रह जाएगा।
