दुःखद: 84 की उम्र में ‘शोले’ के अमर जेलर असरानी का निधन, अंतिम सफर की अनसुनी डिटेल्स

मुंबई की हलचल भरी दुनिया में आज एक खालीपन सा छा गया है। बॉलीवुड के वो चेहरे, जो हंसी के ठहाके बिखेरते थे, अब चुपके से अलविदा कह गया – दिग्गज अभिनेता असरानी।

असरानी का निधन आज दोपहर करीब 4 बजे मुंबई के एक निजी अस्पताल में हुआ, जहां वो लंबे समय से बीमार चल रहे थे। 84 वर्षीय गोवर्धन असरानी, जिन्हें फैंस प्यार से असरानी जी कहते थे, ने बॉलीवुड को पांच दशकों से ज्यादा समय तक अपनी कॉमिक टाइमिंग से गुदगुदाया। उनके भतीजे अशोक असरानी ने इसकी पुष्टि की है, और खबर फैलते ही सोशल मीडिया पर श्रद्धांजलि की बाढ़ आ गई।

दुःखद: 84 की उम्र में 'शोले' के अमर जेलर असरानी का निधन, अंतिम सफर की अनसुनी डिटेल्स

यह खबर न सिर्फ सिनेमा प्रेमियों को स्तब्ध कर रही है, बल्कि बॉलीवुड इंडस्ट्रीज के हर कोने से संवेदनाओं का सैलाब उमड़ पड़ा है।

असरानी का निधन: बीमारी से जंग का अंत और उद्योग में सन्नाटा

असरानी लंबे समय से स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे थे। पिछले कुछ महीनों में उनकी हालत बिगड़ती गई, और आज सुबह अस्पताल में भर्ती होने के बाद डॉक्टरों ने अंतिम सांस लेने की घोषणा कर दी।

एक करीबी सूत्र के मुताबिक, यह लंबी बीमारी का नतीजा था, जिसमें सांस लेने में तकलीफ मुख्य समस्या बनी रही। मुंबई के हेल्थकेयर सर्कल में यह बात फैल चुकी है कि असरानी ने आखिरी दिनों में भी परिवार के साथ वक्त बिताया, लेकिन उनकी जिदंगी का पर्दा अब हमेशा के लिए गिर गया।

बॉलीवुड के कई सितारे इस खबर पर चुप हैं, लेकिन कुछ ने तुरंत प्रतिक्रिया दी। राजकुमार हिरानी जैसे निर्देशक, जिन्होंने असरानी के साथ काम किया, ने कहा कि उनकी हंसी अब भी कानों में गूंज रही है। यह असरानी का निधन नहीं, बल्कि एक दौर का अंत लगता है, जब कॉमेडी इतनी सहज और यादगार थी।

असरानी का सफर: जयपुर से मुंबई तक की अनकही कहानी

जड़ें जो सिंधी परिवार से जुड़ीं

गोवर्धन असरानी का जन्म 1 जनवरी 1941 को जयपुर के एक मध्यमवर्गीय सिंधी हिंदू परिवार में हुआ था। पिता का कारोबार कालीन का था, और घर में चार बहनें व तीन भाई थे। गणित में कमजोर असरानी ने सेंट जेवियर्स स्कूल से मैट्रिक किया, फिर राजस्थान कॉलेज से ग्रेजुएशन।

पढ़ाई के दौरान ऑल इंडिया रेडियो में वॉयस आर्टिस्ट का काम किया, जो उनकी एक्टिंग की पहली सीढ़ी बना। 1960-62 के बीच साहित्य कलभाई ठक्कर से एक्टिंग सीखी, और 1962 में मुंबई पहुंचे। यहां किशोर साहू और ऋषिकेश मुखर्जी की सलाह पर 1964 में FTII पुणे में दाखिला लिया, जहां 1966 में कोर्स पूरा किया।

यह वो दौर था जब असरानी ने फैसला लिया कि बिजनेस नहीं, सिनेमा ही उनकी दुनिया होगी।

बॉलीवुड में धमाकेदार एंट्री और रिकॉर्ड्स

1967 में ‘हरे कांच की चूड़ियां’ से डेब्यू किया, लेकिन असली पहचान 1970 के दशक में मिली। 1970-79 के बीच 101 फिल्मों में नजर आए, और 1980 के दशक में 107 फिल्मों का रिकॉर्ड बनाया – जो किसी कैरेक्टर आर्टिस्ट का सबसे ज्यादा है।

राजेश खन्ना के साथ 25 फिल्में कीं, जिनमें ‘नमक हराम’ (1973) ने दोस्ती की नींव रखी। गुजराती सिनेमा में हीरो बने, 1972-84 तक लीड रोल्स किए।

निर्देशन में भी हाथ आजमाया – छह फिल्में बनाईं, जिनमें ‘चला मुरारी हीरो बनने’ (1977) को क्रिटिक्स की तारीफ मिली।

टीवी पर ‘नटखट नारद’ (1985) में नारद बने, और हाल में ‘परमानेंट रूममेट्स’ (2016) वेब सीरीज में ग्रैंडफादर का रोल किया। FTII में 1988-93 तक डायरेक्टर रहे, और ‘द लायन किंग’ के हिंदी वर्जन में जाजू की आवाज दी।

यादगार रोल्स जो हंसी का खजाना भर गए

असरानी की खासियत थी उनकी टाइमिंग – वो डायलॉग बोले बिना भी हंसाते थे। ‘शोले’ (1975) का जेलर रोल तो अमर हो गया, जहां “हम अंग्रेजों के जमाने के जेलर है…” लाइन आज भी दोहराई जाती है। ‘चुपके चुपके’ (1975) में धीरज कुमार, ‘बावर्ची’ (1972) में सेवक, ‘अभिमान’ (1973) में सपोर्टिंग – ये रोल्स हृषिकेश मुखर्जी की फिल्मों में चमके। 1980 के दशक में ‘हम ना सुधरेंगे’ (1980) जैसी अपनी डायरेक्टेड फिल्म में खुद हीरो बने।

फिर 1990-2000 के दशक में डेविड धवन-प्रियदर्शन की कॉमेडी में फिट बैठे – ‘हीरा फेरी’ (2000), ‘गर्म मसाला’ (2005), ‘मालामाल वीकली’ (2006), ‘भागम भाग’ (2006)। हाल की ‘ड्रीम गर्ल 2’ (2023) और ‘नॉन स्टॉप धमाल’ (2023) में भी नजर आए।

गुजराती हिट्स जैसे ‘अमदावाद नो रिक्शावाला’ (1974) और ‘सात कैदी’ (1986) में डायरेक्टर-एक्टर बने। अवॉर्ड्स में फिल्मफेयर बेस्ट कॉमिक परफॉर्मेंस ‘आज की ताजा खबर’ (1974) और ‘बालिका बधू’ (1976) के लिए जीता।

निजी जिंदगी: प्यार से सजी जोड़ी और चुनौतियां

असरानी की शादी अभिनेत्री मंजू बंसल (अब मंजू असरानी) से हुई, जो ‘आज की ताजा खबर’ (1973) और ‘नमक हराम’ के सेट पर प्यार हुआ। दोनों ने ‘तपस्या’ (1976), ‘चंदी सोना’ (1977), ‘जुरमाना’ (1979) जैसी आठ फिल्मों में साथ काम किया।

कपल ने होम प्रोडक्शन ‘हम ना सुधरेंगे’ (1980) भी बनाया। 1982 में छोटी गुजराती प्रोडक्शन कंपनी शुरू की, जो 1996 में मुनाफे में बंद हुई। 1991 तक कपड़े के बिजनेस में निवेश किया, लेकिन नुकसान हुआ। परिवार के साथ शांत जिंदगी गुजारी, जहां हंसी हमेशा साथी रही।

असरानी का अंतिम सफर: सांताक्रूज में अलविदा

दीपावली के दिन आज शाम यानी 20 अक्तूबर सोमवार की शाम को उनका अंतिम संस्कार मुंबई के सांताक्रूज क्रिमेटोरियम में हुआ, जहां परिवार और करीबी दोस्त मौजूद रहे। भतीजे अशोक ने बताया कि असरानी ने आखिरी इच्छा जताई थी कि उनका जाना चुपचाप हो। उद्योग से अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र जैसे सितारों ने वीडियो मैसेज भेजे, जबकि अनिल कपूर ने कहा, “उनकी विरासत स्क्रीन पर जिंदा रहेगी।”

असरानी की यादें अब रील्स में सांस लेंगी। बॉलीवुड की इस कमी को भरना मुश्किल, लेकिन उनकी हंसी की गूंज दूर तक जाएगी। अपडेट्स के लिए चैनल से जुड़े रहें – अगली ब्रेकिंग के लिए तैयार।

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