हरियाणा ADGP वाई. पूरन कुमार की आत्महत्या के मामले में कांग्रेस का तीखा हमला, जातिगत भेदभाव पर सवाल

हरियाणा पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी की मौत ने पूरे सिस्टम पर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या जाति आधारित उत्पीड़न ने एक आईपीएस अधिकारी को इतना मजबूर कर दिया कि उन्होंने खुदकुशी का रास्ता चुन लिया?

चंडीगढ़ में हुई इस दुखद घटना ने न सिर्फ पुलिस महकमे को हिला दिया, बल्कि राजनीतिक गलियारों में भी हलचल मचा दी है। ADGP वाई. पूरन कुमार की आत्महत्या के मामले में कांग्रेस सांसद रणदीप सिंह सुरजेवाला ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सरकार और प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि अगर एक दलित अधिकारी को सिस्टमेटिक भेदभाव का शिकार बनना पड़ता है, तो राज्य की हालत का अंदाजा लगाया जा सकता है।

सुरजेवाला की प्रेस कॉन्फ्रेंस: मुख्य बातें

ग्राउंड से मिली जानकारी के मुताबिक, सुरजेवाला ने चंडीगढ़ में मीडिया से बातचीत में सीधे-सीधे सवाल उठाए। उन्होंने पूछा कि जब पूरन कुमार ने सरकार को जातिगत उत्पीड़न की शिकायत लिखी, तो क्यों कोई एक्शन नहीं लिया गया? क्या प्रशासन ने ऐसी परिस्थितियां बना दीं कि एक सीनियर पुलिस अफसर को आत्महत्या जैसा कदम उठाना पड़ा? उनकी बातों से साफ था कि यह मामला सिर्फ एक मौत नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की खामियों को उजागर कर रहा है।

घटना की पृष्ठभूमि: सुसाइड नोट और आरोप

हरियाणा कैडर के आईपीएस अधिकारी वाई. पूरन कुमार ने चंडीगढ़ स्थित अपने घर में खुद को गोली मार ली थी। उनके पास से मिले आठ पेज के सुसाइड नोट में सीनियर अधिकारियों पर मेंटल हैरसमेंट और कास्ट डिस्क्रिमिनेशन के आरोप लगाए गए हैं। नोट में डीजीपी समेत 10 अधिकारियों के नाम हैं, जिन्होंने कथित तौर पर उन्हें अपमानित किया। परिवार का कहना है कि यह नोट साफ दिखाता है कि अधिकारी टूट चुके थे, और उनकी पत्नी, जो खुद आईएएस हैं, ने बताया कि मौत से पहले उन्होंने विल मैसेज किया था, लेकिन कॉल्स का जवाब नहीं दिया।

परिवार की शिकायत: शव को ले जाने पर विवाद

प्रेस कॉन्फ्रेंस में सुरजेवाला ने एक और मुद्दा उठाया – पूरन कुमार के शव को सेक्टर 16 से पीजीआई ले जाने का। उन्होंने कहा कि यह फैसला परिवार की सहमति के बिना लिया गया, जो बेहद अमानवीय है। परिवार ने इस पर सवाल उठाते हुए कहा कि प्रशासन ने किस आधार पर ऐसा किया? चंडीगढ़ पुलिस ने अब इस मामले में एफआईआर दर्ज की है, और एससी/एसटी एक्ट के तहत जांच चल रही है। परिवार गिरफ्तारियां मांग रहा है, जबकि पुलिस ने छह सदस्यों वाली एसआईटी बनाई है, जिसकी अगुवाई आईजी पुष्पेंद्र कुमार कर रहे हैं।

जांच की दिशा: क्या निकलेगा नतीजा?

इस केस ने हरियाणा पुलिस में दलित अधिकारियों के साथ होने वाले व्यवहार पर बहस छेड़ दी है। सुसाइड नोट में जिक्र किए गए पब्लिक हुमिलिएशन और सिस्टेमेटिक इग्नोरेंस ने कई सवाल खड़े किए हैं। चंडीगढ़ पुलिस की एसआईटी अब सबूत जुटा रही है, और परिवार का कहना है कि एफआईआर में एससी/एसटी एक्ट को कमजोर किया गया है। यह देखना बाकी है कि जांच कितनी पारदर्शी होगी और आरोपी अधिकारियों पर क्या कार्रवाई होती है।

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