सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश पर जूता फेंके जाने की अभूतपूर्व घटना ने देश की न्यायिक व्यवस्था और लोकतांत्रिक मर्यादाओं पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने इस घटना को न्यायपालिका पर हमला बताते हुए सत्तारूढ़ दल पर तीखे सवाल किए हैं।
घटना का विस्तृत ब्योरा: क्या हुआ था सुप्रीम कोर्ट में?
देश की सर्वोच्च अदालत का परिसर सोमवार को एक शर्मनाक घटना का गवाह बना। जहां जस्टिस बी. आर. गवई (CJI B.R. Gavai) पर अधिवक्ता राकेश किशोर ने जूता फेंक दिया। यह घटना न्यायपालिका के इतिहास में एक काला अध्याय के रूप में दर्ज हो गई है।
घटना के तत्काल बाद कोर्ट रूम में हड़कंप मच गया। सुरक्षा कर्मियों ने आरोपी को हिरासत में ले लिया। हालाँकि, मुख्य न्यायाधीश ने अद्भुत संयम दिखाते हुए कार्यवाही को जारी रखा, लेकिन पूरे न्यायिक परिसर में इस अभूतपूर्व घटना की चर्चा गर्म थी।
तेजस्वी यादव का तीखा रुख: ‘संविधान पर हमला’
विपक्ष के प्रमुख नेताओं में से एक और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने इस घटना पर तत्काल प्रतिक्रिया देते हुए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक लंबी पोस्ट लिखी।
- गंभीर आरोप: यादव ने लिखा, “2014 के बाद जिस तरीके से राजकीय संरक्षण में विभिन्न माध्यमों से देश में घृणा और हिंसा को नॉर्मलाइज किया गया है, यह उसका दुष्परिणाम है।”
- दलित समुदाय पर सवाल: उन्होंने एक महत्वपूर्ण सवाल उठाते हुए लिखा, “क्या दलित समुदाय से आने वाले और संविधान की भावना का पालन करने वाले व्यक्ति भी संवैधानिक पदों पर सुरक्षित नहीं हैं?”
- बाबासाहेब से जोड़ा: तेजस्वी ने दावा किया, “यह जूता देश के मुख्य न्यायाधीश पर नहीं, बल्कि संविधान और संविधान के शिल्पकार हमारे पूजनीय बाबा साहेब अंबेडकर पर फेंका गया है।”
राजनीतिक हलकों में भूचाल
तेजस्वी यादव के इस बयान ने राजनीतिक गलियारों में तूफान ला दिया है। विपक्षी दलों ने घटना की निंदा करते हुए तेजस्वी के बयान का समर्थन किया है। वहीं, सत्तारूढ़ दल के नेताओं ने भी इस घटना को न्यायपालिका का अपमान बताया है, हालाँकि तेजस्वी द्वारा लगाए गए राजनीतिक आरोपों पर उनकी प्रतिक्रिया का इंतजार बाकी है।
“भारत के मुख्य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति बी.आर. गवई जी से बात की। आज सुबह सुप्रीम कोर्ट परिसर में उन पर हुए हमले से हर भारतीय क्षुब्ध है। हमारे समाज में ऐसे निंदनीय कृत्यों के लिए कोई जगह नहीं है। यह अत्यंत निंदनीय है।” – प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
न्यायिक इतिहास का काला दिन के रूप में दर्ज इस प्रकरण ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। यह घटना न्यायपालिका की स्वतंत्रता और गरिमा के संरक्षण की निरंतर चलने वाली लड़ाई में एक चेतावनी के रूप में सामने आई है।
