अफगानिस्तान डिजिटल ब्लैकआउट: तालिबान ने पूरे देश में लगाई इंटरनेट और मोबाइल पर तालाबंदी

Akanksha Yadav

30/09/2025

💥 अफगानिस्तान में डिजिटल सन्नाटा: ‘अनैतिकता’ के नाम पर तालिबान ने पूरे देश को दुनिया से किया कटा

काबुल। एक सोमवार की सुबह, अफगानिस्तान के लोगों ने जब अपने फोन उठाए तो वो दुनिया से कट चुके थे। तालिबान सरकार के एक आदेश ने पूरे देश में डिजिटल ब्लैकआउट ला दिया, जिससे इंटरनेट और मोबाइल नेटवर्क दोनों पूरी तरह से ठप हो गए। यह पहली बार है जब अफगानिस्तान में एक साथ दोनों सेवाओं पर इस तरह की पाबंदी लगाई गई है, जिससे करोड़ों लोग न सिर्फ ऑनलाइन दुनिया से, बल्कि एक-दूसरे और बाहरी मुल्कों से भी संपर्क टूटने की स्थिति में आ गए हैं ।

इस अफगानिस्तान इंटरनेट बंद की वजह से देश की कनेक्टिविटी सामान्य स्तर के मुश्किल से 14% पर पहुंच गई है । स्थानीय इंटरनेट प्रदाताओं ने पुष्टि की है कि यह कार्रवाई तालिबान अधिकारियों के स्पष्ट आदेश पर की गई है ।

📞 कैसे हुई सेवाएं बंद? डिजिटल ब्लैकआउट का क्रम

यह डिजिटल सन्नाटा धीरे-धीरे नहीं, बल्कि एक सुनियोजित तरीके से लाया गया। मौके पर मौजूद सूत्रों और स्थानीय निवासियों के मुताबिक, इसकी शुरुआत फाइबर-ऑप्टिक इंटरनेट लाइनों को बंद करने के साथ हुई ।

  • सबसे पहले फाइबर-ऑप्टिक की लाइनें काटी गईं, जिससे ब्रॉडबैंड और वाई-फाई सेवाएं चौपट हो गईं।
  • इसके बाद कुछ घंटों तक मोबाइल डेटा ने काम किया, लेकिन जल्द ही मोबाइल टावरों को भी बंद कर दिया गया ।
  • अब स्थिति यह है कि राजधानी काबुल से लेकर हेरात, मजार-ए-शरीफ और उरुजगान जैसे बड़े शहरों में न तो इंटरनेट चल रहा है और न ही फोन कॉल्स हो पा रही हैं । अंतरराष्ट्रीय कॉल्स तो पूरी तरह से नामुमकिन हो गई हैं।

🛑 क्यों लगाया गया बंद? ‘अनैतिकता’ का बहाना या आवाज दबाने की कोशिश?

तालिबान प्रशासन की तरफ से अब तक कोई आधिकारिक और विस्तृत बयान तो नहीं आया है, लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स इसके पीछे ‘अनैतिक गतिविधियों’ पर रोक लगाने का तर्क दे रही हैं । हालाँकि, अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ और मानवाधिकार संगठन इस कदम को आम जनता पर राजनीतिक नियंत्रण को और सख्त करने और संभावित विरोध-प्रदर्शनों को रोकने की कोशिश मान रहे हैं ।

एक पत्रकारिता संगठन के स्थानीय निदेशक ने हाल ही में चेतावनी देते हुए कहा था कि ऐसे फैसले न सिर्फ पत्रकारों के काम को मुश्किल में डालते हैं, बल्कि लोगों के “सूचना के अधिकार” पर भी एक बड़ा हमला है ।

आम आदमी पर क्या पड़ा असर? एक देश दुनिया से हो गया कटा

इस डिजिटल ब्लैकआउट ने अफगान नागरिकों की रोजमर्रा की जिंदगी को पूरी तरह से अस्त-व्यस्त कर दिया है। इसका असर हर उस शख्स पर पड़ा है, जो दुनिया से जुड़ा हुआ है।

  • पारिवारिक संपर्क टूटा: विदेशों में रह रहे अफगान नागरिक अपने अफगानिस्तान में मौजूद परिवार वालों से कोई संपर्क नहीं कर पा रहे हैं। एक ऐसे समय में जब देश गहरे आर्थिक और मानवीय संकट से गुजर रहा है, यह स्थिति लोगों की चिंता और बढ़ा रही है ।
  • व्यापार पर संकट: जिन कारोबारियों का रोजगार ऑनलाइन निर्भर है, वे सबसे ज्यादा मुश्किल में हैं। मजार-ए-शरीफ के एक ऑनलाइन स्नैक व्यापारी ने कहा, “हम 21वीं सदी में हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि हम पीछे जा रहे हैं। मेरा सारा कारोबार ऑनलाइन है।” बैंकिंग और सरकारी कामकाज में भी भारी रुकावटें आई हैं।
  • महिलाओं और लड़कियों की शिक्षा बर्बाद: तालिबान द्वारा लड़कियों की स्कूल और यूनिवर्सिटी जाने पर पहले से प्रतिबंध लगाया जा चुका है। ऐसे में, ऑनलाइन कक्षाएं ही उनकी शिक्षा की आखिरी उम्मीद थीं। कंधार की एक छात्रा ने बताया कि बिना इंटरनेट के वह अपनी ऑनलाइन अंग्रेजी की कक्षा नहीं ले पाएगी। एक अन्य लड़की ने कहा कि उसकी कोडिंग और ग्राफिक डिजाइन की पढ़ाई पूरी तरह से रुक गई है ।
  • मानवीय सहायता पर संकट: अफगानिस्तान पहले से ही दुनिया के सबसे गंभीर मानवीय संकटों से जूझ रहा है। राहत संगठनों के लिए अब जमीनी हालात का आकलन करना, लोगों तक मदद पहुंचाना और अपने स्टाफ से समन्वय बनाना लगभग नामुमकिन हो गया है ।

🌍 अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्या है प्रतिक्रिया?

इस व्यापक इंटरनेट शटडाउन ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान खींचा है। साइबर सिक्योरिटी निगरानी संगठन नेटब्लॉक्स ने इसकी पुष्टि करते हुए कनेक्टिविटी में भारी गिरावट का आंकड़ा पेश किया है । माना जा रहा है कि संयुक्त राष्ट्र और प्रमुख पश्चिमी देशों की तरफ से इसकी कड़ी आलोचना हो सकती है। सवाल यह उठ रहा है कि बिना संपर्क और पारदर्शिता के अफगानिस्तान को मदद कैसे पहुंचाई जा सकती है ।

🗒️ संक्षेप में: एक राष्ट्र की डिजिटल विरासत पर कुठाराघात

तालिबान का यह फैसला न सिर्फ अफगानिस्तान के वर्तमान को अंधकार में धकेल रहा है, बल्कि इसने उस भविष्य की संभावनाओं पर भी गहरी चोट की है जिसे दशकों में बनाया गया था। रिपोर्ट्स के मुताबिक, 2024 तक अफगानिस्तान में 9,350 किलोमीटर से अधिक का फाइबर-ऑप्टिक नेटवर्क था, जो पूर्व की सरकारों ने बनवाया था । उस विशाल डिजिटल ढांचे को एक झटके में बेकार कर दिया गया है। यह डिजिटल ब्लैकआउट अफगानिस्तान को आधुनिक दुनिया से काटकर एक ऐसी जगह ले जाने का प्रयास है, जहां से आवाज़ निकलकर बाहर नहीं आ सके। अब पूरी दुनिया की नजरें यह देखने को बेताब हैं कि अफगानिस्तान का यह डिजिटल सन्नाटा कब और कैसे टूटता है।

Leave a Comment