सोनम वांगचुक की पूरी जीवनी: लद्दाख के इंजीनियर से ग्लोबल इंस्पिरेशन तक

Akanksha Yadav

26/09/2025

लद्दाख की बर्फीली वादियों से निकलकर दुनिया को नई राह दिखाने वाले सोनम वांगचुक (Sonam Wangchuk) एक ऐसे शख्स हैं, जिनकी जिंदगी नवाचार, शिक्षा और पर्यावरण संरक्षण की मिसाल है। वे न सिर्फ एक इंजीनियर हैं, बल्कि एक शिक्षाविद्, सामाजिक कार्यकर्ता और जलवायु योद्धा भी, जिनकी कहानी बॉलीवुड फिल्म ‘3 इडियट्स’ के किरदार फुंसुख वांगडू से प्रेरित है। आइए, उनकी जिंदगी के हर पहलू पर नजर डालते हैं।

प्रारंभिक जीवन

सोनम वांगचुक का जन्म 1 सितंबर 1966 को लद्दाख के लेह जिले में अलची के पास उलेतोक्पो गांव में हुआ था। उनका गांव सिर्फ पांच घरों का छोटा सा बस्ती था, जहां स्कूल की कोई सुविधा नहीं थी। नौ साल की उम्र तक वे स्कूल नहीं गए, और उनकी मां ने उन्हें घर पर ही मूल भाषा में बुनियादी शिक्षा दी।

नौ साल की उम्र में उन्हें श्रीनगर के एक स्कूल में दाखिला दिलाया गया, लेकिन वहां भाषा और सांस्कृतिक अंतर के कारण उन्हें काफी परेशानी हुई। बच्चे उन्हें अलग दिखने की वजह से तंग करते थे, और भाषा न समझने पर उन्हें ‘बेवकूफ’ समझा जाता था। सोनम इसे अपनी जिंदगी का सबसे अंधेरा दौर बताते हैं। 1977 में वे अकेले दिल्ली भाग आए और विशेष केंद्रीय विद्यालय के प्रिंसिपल से अपनी बात रखी, जहां उन्हें दाखिला मिला।

शिक्षा

सोनम वांगचुक ने 1987 में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी श्रीनगर (तब आरईसी श्रीनगर) से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बी.टेक. की डिग्री हासिल की। इंजीनियरिंग स्ट्रीम चुनने पर पिता से मतभेद होने के कारण उन्होंने अपनी पढ़ाई का खर्च खुद उठाया। 2011 में उन्होंने फ्रांस के क्रेटर स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर, ग्रेनोबल से अर्थन आर्किटेक्चर में दो साल की उच्च शिक्षा प्राप्त की। उनकी शिक्षा का फोकस हमेशा व्यावहारिक और पर्यावरण अनुकूल तकनीकों रहा।

करियर और सामाजिक योगदान

ग्रेजुएशन के बाद 1988 में सोनम वांगचुक ने अपने भाई और पांच साथियों के साथ स्टूडेंट्स एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख (एसईसीएमओएल) की स्थापना की, जो लद्दाख की शिक्षा प्रणाली को सुधारने का उद्देश्य रखती थी।

सोनम वांगचुक कहते हैं कि लद्दाख की शिक्षा व्यवस्था विदेशी थी, जो स्थानीय जरूरतों से मेल नहीं खाती। 1994 में एसईसीएमओएल ने ऑपरेशन न्यू होप शुरू किया, जिसमें सरकार और गांवों के साथ मिलकर सरकारी स्कूलों में सुधार लाए गए। जून 1993 से अगस्त 2005 तक उन्होंने लद्दाख की एकमात्र प्रिंट पत्रिका ‘लदाग्स मेलोंग’ का संपादन किया।

2001 में वे पहाड़ी परिषद सरकार में शिक्षा सलाहकार बने, और 2002 में लद्दाख वॉलंटरी नेटवर्क (एलवीएन) की स्थापना की, जहां वे सचिव रहे। 2005 में वे भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय में प्राथमिक शिक्षा के राष्ट्रीय गवर्निंग काउंसिल के सदस्य बने। 2007-2010 तक उन्होंने नेपाल में शिक्षा सुधारों में योगदान दिया। 2013 में वे जम्मू-कश्मीर राज्य बोर्ड ऑफ स्कूल एजुकेशन के सदस्य बने। 2015 से वे हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव्स, लद्दाख (एचआईएएल) की स्थापना पर काम कर रहे हैं, जो लद्दाख की चुनौतियों पर आधारित शिक्षा प्रदान करता है।

सोनम वांगचुक ने एसईसीएमओएल कैंपस को सौर ऊर्जा से चलने वाला बनाया, जहां कोई जीवाश्म ईंधन नहीं इस्तेमाल होता। 2013 में उन्होंने ‘आइस स्तूप’ तकनीक ईजाद की, जो सर्दियों का पानी कृत्रिम ग्लेशियर में जमा कर वसंत में इस्तेमाल करता है। 2016 में इसे आपदा प्रबंधन के लिए इस्तेमाल किया, जैसे सिक्किम के साउथ ल्होनाक झील पर।

फरवरी 2021 में उन्होंने भारतीय सेना के लिए सोलर-पावर्ड टेंट विकसित किए, जो ऊंचाई वाले इलाकों में 10 सैनिकों को ठंड से बचाते हैं। 2016 में उन्होंने फार्मस्टेज लद्दाख शुरू किया, जहां पर्यटक स्थानीय घरों में रहते हैं।

उपलब्धियां

सोनम वांगचुक की सबसे बड़ी उपलब्धि शिक्षा और पर्यावरण क्षेत्र में है। एसईसीएमओएल के तहत हजारों छात्रों को बेहतर शिक्षा मिली। आइस स्तूप प्रोजेक्ट ने लद्दाख के किसानों की पानी की समस्या हल की, जहां 2014 में 1.5 लाख लीटर पानी जमा किया गया। उन्होंने नेपाल, सिक्किम और स्विस आल्प्स में भी इस तकनीक का विस्तार किया।

एचआईएएल के जरिए वे लद्दाख-केंद्रित शिक्षा मॉडल बना रहे हैं। 2021 में सेना के लिए सोलर टेंट उनकी नवाचार की मिसाल है। वे जलवायु परिवर्तन पर सक्रिय हैं, और 2023 में क्लाइमेट फास्ट किया। हाल ही में लद्दाख आंदोलन में सक्रिय रहे, जहां राज्य दर्जा और 6वीं अनुसूची की मांग की गई। 7

पुरस्कार और सम्मान

सोनम वांगचुक को कई प्रतिष्ठित पुरस्कार मिले हैं:

  • रेमन मैग्सेसे अवॉर्ड (2018), एशिया का नोबेल कहा जाता है, शिक्षा और पर्यावरण में योगदान के लिए।
  • रोलेक्स अवॉर्ड फॉर एंटरप्राइज (2016), आइस स्तूप प्रोजेक्ट के लिए।
  • इंटरनेशनल टेरा अवॉर्ड (2016), एसईसीएमओएल के राम्ड अर्थ बिल्डिंग के लिए।
  • गवर्नर्स मेडल फॉर एजुकेशनल रिफॉर्म (जम्मू-कश्मीर, 1996)।
  • मैन ऑफ द ईयर बाय द वीक (2001)।
  • ग्रीन टीचर अवॉर्ड बाय सैंक्चुअरी एशिया (2004)।
  • अशोका फेलोशिप (2002)।
  • रियल हीरोज अवॉर्ड बाय सीएनएन-आईबीएन (2008)।
  • जीक्यू मेन ऑफ द ईयर – सोशल एंटरप्रेन्योर ऑफ द ईयर (2017)।
  • डॉ. पॉलोस मार ग्रेगोरियस अवॉर्ड (2017)।
  • आईएडब्ल्यूएस लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड (2017)।
  • डॉक्टर ऑफ लिटरेचर (ऑनरेरी) बाय सिंबायोसिस इंटरनेशनल (2018)।
    उनकी उपलब्धियां वैश्विक स्तर पर मान्यता प्राप्त हैं।

व्यक्तिगत जीवन

सोनम वांगचुक का व्यक्तिगत जीवन काफी सादगीपूर्ण है। वे लद्दाख में रहते हैं और अपनी जिंदगी को शिक्षा व पर्यावरण कार्यों के लिए समर्पित कर चुके हैं। उनकी शादी के बारे में सार्वजनिक जानकारी उपलब्ध नहीं है, और वे मुख्य रूप से अपने कार्यों से पहचाने जाते हैं।

हाल के वर्षों में वे जलवायु परिवर्तन और लद्दाख की स्वायत्तता के लिए सक्रिय हैं, जहां उन्होंने अनशन और मार्च किए। उनकी संस्थाएं एसईसीएमओएल और एचआईएएल जरूरतमंद बच्चों को मुफ्त शिक्षा प्रदान करती हैं। वे कहते हैं कि उनकी प्रेरणा महात्मा गांधी से मिली है, और वे शांतिपूर्ण तरीके से बदलाव लाने में विश्वास रखते हैं।

सोनम वांगचुक की जिंदगी एक प्रेरणा है, जो दिखाती है कि कैसे एक छोटे गांव का लड़का दुनिया बदल सकता है। उनकी कहानी नवाचार और समर्पण की मिसाल है।

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