अनाज बेचकर पुलिस को दिए 20 हज़ार, फिर भी नहीं छूटा जीतू!
कानपुर के सजेती थाना क्षेत्र के कोटरा गांव में एक युवक की आत्महत्या ने पुलिस भ्रष्टाचार के नंगे चेहरे को उजागर कर दिया है। 42 वर्षीय जीतू निषाद ने पुलिस अधिकारियों द्वारा लगातार प्रताड़ना और रिश्वत की मांग से तंग आकर फांसी लगा ली, जिसके बाद गांव में आक्रोश फैल गया।
📌 घटना की विस्तृत कहानी:
- पारिवारिक विवाद का पुलिस ने उठाया फायदा
- 4 जून को जीतू और उसकी पत्नी सुमन के बीच झगड़े के बाद सुमन अपने पिता रामकिशोर (ग्राम प्रधान) के घर चली गई। जीतू जब उसे वापस लेने 6 जून को ससुराल पहुंचा, तो ससुरालियों ने उसके साथ दुर्व्यवहार किया और पत्नी ने पुलिस को बुला लिया ।
- सजेती थाने की अस्थाई चौकी के दारोगा गौरव सहूलिया और हेड कांस्टेबल रवि ने जीतू को “समझौते” के नाम पर थाने ले जाकर उससे ₹20,000 की मांग की।
- अनाज बेचकर चुकाए ₹20,000, फिर भी नहीं रुकी प्रताड़ना
- जीतू के पिता रमेश चंद्र ने गेहूं बेचकर ₹15,000 जुटाए और पुलिस को दिए। बाकी ₹5,000 के लिए पुलिस ने जीतू को धमकाया और 8 जून को दोबारा उसे चौकी ले जाकर पीटा ।
- 9 जून की शाम जीतू ने घर के अंदर कमरे में खुद को फंदे से लटका लिया। परिवार द्वारा उतारे जाने तक वह नहीं बच सका .
⚖️ आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई:
- एफआईआर दर्ज: मृतक के पिता की शिकायत पर दारोगा गौरव सहूलिया, हेड कांस्टेबल रवि, ससुर रामकिशोर और पत्नी सुमन के खिलाफ गंभीर धाराओं में मामला दर्ज।
- निलंबन: आरोपी पुलिसकर्मियों को तत्काल निलंबित कर दिया गया ।
- प्रशासन का रुख: डीसीपी दक्षिण दीपेंद्र चौधरी ने पुलिस की गलती स्वीकारते हुए कार्रवाई का आश्वासन दिया। विधायक सरोज कुरील ने शव पर चोट के निशान देखकर मामले की तीव्र जांच की मांग की ।
💰 कानपुर पुलिस में भ्रष्टाचार का चलन?
यह घटना उसी शहर की है जहाँ महज एक दिन पहले (9 जून) नौबस्ता थाने के सब-इंस्पेक्टर अभिनव चौधरी को एंटी करप्शन टीम ने ₹20,000 की रिश्वत लेते रंगेहाथ पकड़ा था। उसे जेल भेजा गया, जो पुलिस भ्रष्टाचार की व्यापकता को उजागर करता है ।
तालिका: मामले की प्रमुख जानकारी
पहलू | विवरण |
---|---|
पीड़ित | जीतू निषाद (42 वर्ष), 3 बेटियों का पिता |
मांगी गई रकम | ₹20,000 |
चुकाई गई राशि | ₹15,000 (गेहूं बेचकर) |
आरोपी पुलिसकर्मी | SI गौरव सहूलिया, HC रवि |
कानूनी कार्रवाई | 4 आरोपियों के खिलाफ एफआईआर, पुलिसकर्मी निलंबित |
📢 गांव में आक्रोश, परिवार की मांग:
जीतू की मौत के बाद ग्रामीणों ने विरोध प्रदर्शन किया। परिवार का कहना है कि पुलिस ने उनके बेटे को “पत्नी को वापस लाने” के नाम पर नकदी ऐंठने का हथियार बनाया। जीतू सूरत में नौकरी करता था और कोविड के बाद से ही गांव में फंसा था, जहां आर्थिक तंगी उसकी मजबूरी बन गई थी ।
सिस्टम पर सवाल: डीसीपी द्वारा “पुलिस की गलती” स्वीकारने के बावजूद यह सवाल बरकरार है कि क्या निलंबन और जांच उन अधिकारियों को सबक सिखा पाएंगी जो रिश्वत को “राजस्व” समझते हैं?
यूपी पुलिस द्वारा की गई यह घटना न सिर्फ पुलिस भ्रष्टाचार की क्रूरता को दिखाती है, बल्कि सरकारी मशीनरी पर सवाल उठाती है जो आम नागरिकों को न्याय दिलाने के बजाय उनका शोषण करने में लगे रहते हैं। जीतू की तीन नाबालिग बेटियां अब पिता के साथ-साथ उस व्यवस्था की भी मुखर गवाह बन गई हैं जिसने उनके बाप को जिंदगी से हाथ धोने पर मजबूर कर दिया।
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